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दामोदर अष्टकम – Damodar Ashtakam

दामोदर अष्टकम सत्यव्रता मुनि द्वारा कहा गया है तथा इसे श्रील व्यासदेव जी ने लिखा हैं ।भगवान श्री कृष्ण का प्रिय माह  कार्तिक में वैष्णव प्रति दिन संध्या के समय दामोदर अष्टकम का गान करते हैं तथा दीप दान भी करते हैं । शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास में  दामोदर अष्टकम का पाठ करने से भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।  दामोदर अष्टकम (1) नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ (2) रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्।मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ (3) इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्।तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ (4) वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह।इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥ (5) इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या।मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ (6) नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्।कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ (7) कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌ त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च।तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ (8) नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने।नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ दामोदर अष्टकम हिंदी में – अर्थ के साथ (1) नमामीश्वरं सच्चिदानंदरूपं लसत्कुण्डलं गोकुले भ्राजमानम्‌ यशोदाभियोलूखलाद्धावमानं परामृष्टमत्यं ततो द्रुत्य गोप्या॥ जिनका सर्वेश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है, जिनके कपोलों पर मकराकृत कुंडल हिलडुल रहे हैं, जो गोकुल नामक दिवय धाम में परम शोभायमान हैं, जो (दधिभाण्ड फोड़ने के कारण) माँ यशोदा के डर से ऊखल से दूर दौड़ रहे हैं किन्तु जिन्हें माँ यशोदा ने उनसे भी अधिक वेगपूर्वक दौड़कर पकड लिया है- ऐसे भगवान्‌ दामोदर को मैं अपना विनम्र प्रणाम अर्पित करता हूँ।  (2) रुदन्तं मुहुर्नेत्रयुग्मं मृजन्तं कराम्भोज-युग्मेन सातङ्कनेत्रम्। मुहुःश्वास कम्प-त्रिरेखाङ्ककण्ठ स्थित ग्रैव-दामोदरं भक्तिबद्धम्॥ (माँ के हाथ में लठिया देखकर) वे रोते-रोते बारम्बार अपनी आँखों को अपने दोनों हस्तकमलों से मसल रहे हैं। उनके नेत्र भय से विह्वल हैं, रूदन के आवेग से सिसकियाँ लेने के कारण उनके त्रिरेखायुक्त कण्ठ में पड़ी हुई मोतियों की माला कम्पित हो रही है। उन परमेश्वर भगवान्‌ दामोदर का, जिनका उदर रस्सियों से नहीं अपितु यशोदा माँ के वात्सल्य-प्रेम से बंधा है, मैं प्रणाम करता हूँ।  (3) इतीद्दक्‌स्वलीलाभिरानंद कुण्डे स्वघोषं निमज्जन्तमाख्यापयन्तम्। तदीयेशितज्ञेषु भक्तैर्जितत्वं पुनः प्रेमतस्तं शतावृत्ति वन्दे॥ जो ऐसी बाल्य-लीलाओं के द्वारा गोकुलवासियों को आनन्द-सरोवरों में डुबोते रहते हैं, और अपने ऐश्वर्य-ज्ञान में मग्न अपने भावों के प्रति यह तथ्य प्रकाशित करते हैं कि उन्हें भय-आदर की धारणाओं से मुक्त अंतरंग प्रेमी भक्तों द्वारा ही जीता जा सकता है, उन भगवान्‌ दामोदर को मं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूँ।  (4) वरं देव! मोक्षं न मोक्षावधिं वा न चान्यं वृणेऽहं वरेशादपीह। इदं ते वपुर्नाथ गोपाल बालं सदा मे मनस्याविरस्तां किमन्यैः?॥ हे प्रभु, यद्यपि आप हर प्रकार के वर देने में समर्थ हैं, तथापि मैं आपसे न तो मोक्ष अथवा मोक्ष के चरम सीमारूप वैकुण्ठ में शाश्वत जीवन और ही (नवधा भक्ति द्वारा प्राप्त) कोई अन्य वरदान माँगता हूँ। हे नाथ! मेरी तो बस इतनी ही इच्छा है कि आपका यह वृंदावन का बालगोपाल रूप मेरे हृदय में सदा प्रकाशित रहे, क्योंकि इसके सिवा मुझे किसी अन्य वरदान से प्रयोजन ही क्या है?  (5) इदं ते मुखाम्भोजमत्यन्तनीलै- र्वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश्च गौप्या। मुहुश्चुम्बितं बिम्बरक्ताधरं मे मनस्याविरस्तामलं लक्षलाभैः॥ हे प्रभु! लालिमायुक्त कोमल श्यामवर्ण के घुँघराले बालों से घिरा हुआ आपका मुखकमल माँ यशोदा के द्वारा बारंबार चुम्बित हो रहा है और आपके होंठ बिम्बफल की भांति लाल हैं। आपके मुखमंडल का यह सुन्दर दृश्य मेरे हृदय में सदा विराजित रहे। मुझे लाखों प्रकार के दूसरे लाभों की कोई आवश्यकता नहीं।  (6) नमो देव दामोदरानन्त विष्णो! प्रसीद प्रभो! दुःख जालाब्धिमग्नम्। कृपाद्दष्टि-वृष्टयातिदीनं बतानु गृहाणेश मामज्ञमेध्यक्षिदृश्यः॥ हे भगवान्‌, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे दामोदर, हे अनंत, हे विष्णु, हे नाथ, मेरे प्रभु, मुझपर प्रसन्न हो जाइये! मैं दुःखों के सागर में डूबा जा रहा हूँ। मेरे ऊपर अपनी कृपादृष्टि की वर्षा करके मुझ दीन-हीन शरणागत का उद्वार कीजिए और मेरे नेत्रों के समझ प्रकट हो जाइये।  (7) कुबेरात्मजौ बद्धमूर्त्यैव यद्वत्‌ त्वया मोचितौ भक्तिभाजौकृतौ च। तथा प्रेमभक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ न मोक्षे गृहो मेऽस्ति दामोदरेह॥ हे भगवान! दामोदर, जिस प्रकार आपने दामोदर रूप से नलकूबर और मणिग्रीव नामक कुबेरपुत्रों को नारद जी के शाप से मुक्तकर उन्हें अपना महान भक्त बना लिया था, उसी प्रकार मुझे भी आप अपनी प्रेम भक्ति प्रदान कर दीजिए। यही मेरा एकमात्र आग्रह है मुझे किसी भी प्रकार के मोझ की कोई इच्छा नहीं है।  (8) नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने। नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमोऽनन्त लीलाय देवाय तुभ्यम्॥ हे भगवान्‌ दामोदर, मैं सर्वप्रथम आपके उदर को बाँधने वाली दीप्तिमान रस्सी को प्रणाम करता हूँ। आपकी प्रियतमा श्रीमती राधारानी के चरणों में मेरा सादर प्रणाम है, और अनंत लीलायें करने वाले आप परमेश्वर को मेरा प्रणाम है।

मधुराष्टकम – Madhurashtakam – अधरं मधुरं वदनं मधुरं

मधुराष्टकम में  भगवान श्रीकृष्ण के बालरूप का मधुरता से वर्णन किया गया है। श्रीकृष्ण के प्रत्येक अंग, गतिविधियां एवं क्रिया-कलाप मधुर है। वल्लभसम्प्रदाय वैष्णव सम्प्रदाय के भगवान के परम भक्त श्रीवल्लभाचार्य जी ने इसकी रचना की हैं। मधुराष्टकम (1) अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्।हृदयं मधुरं गमनं मधुरं  मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (2) वचनं मधुरं चरितं मधुरं  वसनं मधुरं वलितं मधुरम्।चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (3) वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादो मधुरौ।नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (4) गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (5) करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्।वमितं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (6) गुञ्जा मधुरा, माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा।सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेराखिलंमधुरम्॥ (7) गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्।हृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ (8) गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ मधुराष्टकम हिंदी में – अर्थ के साथ (1) अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम्। हृदयं मधुरं गमनं मधुरं  मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनके होंठ मधुर है, उनका मुख मधुर है, उनके नेत्र मधुर हैं, उनकी मुस्कान मधुर है, उनका हृदय मधुर है, उनकी चाल मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर है।  (2) वचनं मधुरं चरितं मधुरं  वसनं मधुरं वलितं मधुरम्। चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनके शब्द मधुर हैं, उनका चरित्र मधुर है, उनकी पोशाक मधुर है, उनके उदर के मोड़ मधुर हैं, उनकी गतिविधियाँ मधुर हैं, उनका भ्रमण करना (घुमना) मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर हैं।  (3) वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादो मधुरौ। नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनकी बाँसुरी (मुरली) मधुर है, उनके पाँव की रज मधुर है, उनके पाँव मधुर हैं, उनका नृत्य करना मधुर है, उनकी मित्रता मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर हैं। (4) गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्। रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनका गायन मधुर है, उनके पीत वस्त्र (पीले वस्त्र) मधुर हैं, उनका खाना मधुर है, उनका शयन करना मधुर है, उनका सौंदर्य मधुर है, उनका तिलक मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर हैं।  (5) करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरम्। वमितं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनके कार्य मधुर हैं, उनका मुक्ति प्रदान करना मधुर है, उनका चोरी करना मधुर है, उनकी जल-क्रीडाएँ मधुर हैं, उनका अर्पित करना मधुर है, उनकी निस्तब्धता या शांत रहना मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर हैं।  (6) गुञ्जा मधुरा, माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा। सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपतेराखिलंमधुरम्॥ उनका गुञ्जा-बेरी का हार मधुर है, उनकी पुष्प-माला मधुर है, उनकी यमुना नदी मधुर है, उनकी लहरें मधुर हैं, उनका जल मधुर है, उनके कमल मधुर हैं- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर हैं।  (7) गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं भुक्तं मधुरम्। हृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनकी गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीलाएँ मधुर हैं, उनका संयोजन या सम्मिलन मधुर है, उनका भोजन मधुर हैं, उनकी प्रसन्नता मधुर है उनकी शिष्टता (या शिष्ट वयवहार) मधुर है- मधुरता के सम्राट के विषय में सभी वस्तुएँ मधुर हैं।  (8) गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा। दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥ उनके गोप मधुर हैं, उनकी गायें मधुर हैं, उनके कर्मचारीगण मधुर हैं, उनकी सृष्टि मधुर है, उनका कुचलना या रौंदना मधुर है, उनका लाभदायक या सफल होना मधुर है- मधुरता के सम्राट की सभी वस्तुएँ मधुर है।

श्रीगुरुचरण पद्म – Sri Guru Charana Padma

श्री गुरु वंदना (Guru Vandana) प्रेम-भक्ति-चंद्रिका से श्रील नरोत्तम दास ठाकुर द्वारा रचित एक प्रार्थना है। गुरु वंदना प्रतिदिन गुरु पूजा के दौरान गाई जाती हैं । श्रीगुरुचरण पद्म – गुरु वंदना (1) श्रीगुरुचरण पद्म, केवल भकति-सद्म, वन्दो मुइ सावधान मते।याँहार प्रसादे भाई, ए भव तरिया याइ, कृष्ण प्राप्ति हय याँहा हइते॥ (2) गुरुमुख पद्म वाक्य, चितेते करिया ऐक्य, आर न करिह मने आशा।श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति, ये प्रसादे पूरे सर्व आशा॥ (3) चक्षुदान दिलो येई, जन्मे जन्मे प्रभु सेइ, दिवय ज्ञान हृदे प्रकाशित।प्रेम-भक्ति याँहा हइते, अविद्या विनाश जाते, वेदे गाय याँहार चरित॥ (4) श्रीगुरु करुणा-सिन्धु, अधम जनार बंधु, लोकनाथ लोकेर जीवन।हा हा प्रभु कोरो दया, देह मोरे पद छाया, एबे यश घुषुक त्रिभुवन॥ (हरे कृष्ण महामंत्र) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । श्रीगुरुचरण पद्म हिंदी में – अर्थ के साथ (1) श्रीगुरुचरण पद्म, केवल भकति-सद्म, वन्दो मुइ सावधान मते। याँहार प्रसादे भाई, ए भव तरिया याइ, कृष्ण प्राप्ति हय याँहा हइते॥ आध्यात्मिक गुरु के चरणकमल ही एकमात्र साधन हैं जिनके द्वारा हम शुद्ध भक्ति प्राप्त कर सकते हैं। मैं उनके चरणकमलों में अत्यन्त भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक नतमस्तक होता हूँ। उनकी कृपा से जीव भौतिक क्लेशों के महासागर को पार कर सकता है तथा कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकता है।  (2) गुरुमुख पद्म वाक्य, चितेते करिया ऐक्य, आर न करिह मने आशा। श्रीगुरुचरणे रति, एइ से उत्तम-गति, ये प्रसादे पूरे सर्व आशा॥ मेरी एकमात्र इच्छा है कि उनके मुखकमल से निकले हुए शब्दों द्वारा अपनी चेतना को शुद्ध करूँ। उनके चरणकमलों में अनुराग ऐसी सिद्धि है जो समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।  (3) चक्षुदान दिलो येई, जन्मे जन्मे प्रभु सेइ, दिवय ज्ञान हृदे प्रकाशित। प्रेम-भक्ति याँहा हइते, अविद्या विनाश जाते, वेदे गाय याँहार चरित॥ वे मेरी बन्द आँखों को खोलते हैं तथा मेरे हृदय में दिवय ज्ञान भरते हैं। जन्म-जन्मातरों से वे मेरे प्रभु हैं। वे प्रेमाभक्ति प्रदान करते हैं और अविद्या का नाश करते हैं। वैदिक शास्त्र उनके चरित्र का गान करते हैं।  (4) श्रीगुरु करुणा-सिन्धु, अधम जनार बंधु, लोकनाथ लोकेर जीवन। हा हा प्रभु कोरो दया, देह मोरे पद छाया, एबे यश घुषुक त्रिभुवन॥  हे गुरुदेव, करूणासिन्धु तथा पतितात्माओं के मित्र! आप सबके गुरु एवं सभी लोगों के जीवन हैं। हे गुरुदेव! मुझ पर दया कीजिए तथा मुझे अपने चरणों की छाया प्रदान दीजिए। आपका यश तीनों लोकों में फैला हुआ है।

जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन – Jai Jai Jagannath Sachidananda

” जय जय जगन्नाथ शचीर नंदन ” नामक ये वैष्णव भजन वासुदेव घोष द्वारा लिखा गया हैं तथा उनका यह भजन वैष्णवो के बीच बहुत प्रसिद्ध एवम लोकप्रिय हैं। वे इस भजन के अंदर श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं एवम रूप का वर्णन कर रहे हैं । वासुदेव घोष श्री श्री निताई-गौरांग ( नित्यानंद प्रभु और चैतन्य महाप्रभु ) के बहुत घनिष्ट सहयोगी थे। वासुदेव घोष ने बंगाल में भक्ति का प्रचार करने के लिये अनेक वैष्णव भजन लिखे । उन्होंने भगवान गौरांग के बारे में कई गीत लिखे जो आज भी भक्तों द्वारा गाए जाते हैं ऐसा ही भजन हम आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं । जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन (1) जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन।त्रिभूवने करे जार चरण वन्दन।। (2) निलाचले शंख-चक्र-गदा-पद्म-धर।नदीया नगरे दण्ड-कमण्डलु-धर।। (3) केह बोले पूरबे रावण वधिला।गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश करिला।। (4) श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार।हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार।। (5) वासुदेव घोष बोले करि जोड हाथ।जेइ गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ।। जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन हिंदी में – अर्थ के साथ (1) जय जय जगन्नाथ शचीर नन्दन। त्रिभूवने करे जार चरण वन्दन।। जगन्नाथ मिश्र एवम शची देवी के प्रिय पुत्र की जय हो,जय हो। समस्त तीनो लोक उनके चरण कमल में वंदन करते हैं।  (2) निलाचले शंख-चक्र-गदा-पद्म-धर। नदीया नगरे दण्ड-कमण्डलु-धर।। नीलाचल में वे शंख, चक्र, गदा और कमल पुष्प धारण करते हैं, जबकि नदिया नगर में वे एक संन्यासी का डंडा और कमंडलु धारण किए रहते हैं। (3) केह बोले पूरबे रावण वधिला। गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश करिला।।  ऐसा कहा गया हैं कि प्राचीन समय में भगवान रामचंद्र के रूप में, उन्होंने रावण का वध किया था।तब उसके पश्चात् भगवान कृष्ण के रूप में ,उन्होंने वैभव ऐश्वर्य पूर्ण गोलोक की लीलाएं प्रदर्शित की। (4) श्री-राधार भावे एबे गोरा अवतार। हरे कृष्ण नाम गौर करिला प्रचार।।  अब वे पुन: भगवान गौरांग के रूप में आए हैं, गौर वर्ण अवतार श्री राधिका के प्रेम व परम आनंदित भाव से युक्त और पवित्र भगवन्नामो तथा हरे कृष्ण महामंत्र के कीर्तन का चारो ओर प्रसार किया हैं। (5) वासुदेव घोष बोले करि जोड हाथ। जेइ गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ।। वासुदेव घोष दोनो हाथ जोड़ कर कहते हैं ” वे जो गौर हैं, वही कृष्ण हैं, और वही भगवान जगन्नाथ हैं।”

यशोमति नन्दन ब्रजबर नागर – Yashomati Nandan

यशोमति नंदन नामक यह भजन को  ‘श्री नाम कीर्तन’ भी कहते हैं । यह  वैष्णव भजन भक्तिविनोद ठाकुर जी द्वारा रचित ग्रंथ गीतावाली से लिया गया हैं इसके रचिता श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी हैं।। यशोमति नन्दन ब्रजबर नागर – अर्थ के साथ (1) यशोमति नन्दन ब्रजबर नागर,गोकुल रंजन कान । गोपी पराण धन, मदन मनोहर,कालिया दमन विधान ।। श्री कृष्ण माता यशोदा के लाडले पुत्र, ब्रजभूमि के दिव्य प्रेमी,गोकुल के हर्ष ,कान ( कान्हा ,कृष्ण का उपनाम ), गोपियों के जीवन धन हैं।वे कामदेव तक के मन को चुरा लेते हैं और कालिया नाग को दण्ड देते हैं।। (2) अमल हरि नाम अमिय विलासा। विपिन पुरंदर ,नवीन नगर बर,वंशी बदन सुबासा ।। भगवान हरि के ये शुद्ध नाम मधुर,अमृतमय लीलाओं से ओतप्रोत हैं। कृष्ण ब्रज के बारह वनों के स्वामी हैं।वे नितयौवन  पूर्ण  हैं। और सर्वश्रेष्ठ प्रेमी हैं।वे सदैव वंशी बजाते रहते हैं और सर्वश्रेष्ठ वेषधारी हैं। (3) ब्रज जन पालन,असुर कुल नाशन,नन्द गोधन रखवाला। गोविन्द माधव ,नवनीत तस्कर, सुन्दर नन्द गोपाला ।। कृष्ण ब्रजवासियों के रक्षक , विभिन्न असुरकुली के संहारक ,नंद महाराज की गौवो के रखवाले तथा चरवाहे , गौवों ,भूमि तथा आध्यात्मिक इंद्रियों को आनंद देने वाले ,देवी लक्ष्मी के पति , माखन चोर तथा नंद महाराज के सुंदर ग्वालबाल हैं। (4) जामुन तट चर ,गोपी बसन हर ,रास रसिक, कृपामय । श्री राधावल्लभ, वृंदावन नटबर ,भक्ति विनोद आश्रय।। कृष्ण यमुना तट पर विचरण करते हैं।वे स्नान कर रही ब्रज युवतियों के चीर चुराते  हैं।वे रास नृत्य के रस में हर्षित होते हैं। वे अत्यंत दयालु हैं,वे श्रीमती राधारानी के प्रेमी तथा प्रिय हैं। वे वृंदावन के महान नर्तक तथा ठाकुर भक्तिविनोद के एकमात्र शरण हैं। (हरे कृष्ण महामंत्र) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।

विभावरी शेष आलोक प्रवेश – Vibhavari Shesha

विभावरी शेष नामक यह भजन वृन्दावन में प्रतिदिन गुरु अष्टकम के बाद गाया जाता हैं। इस भजन की रचना ब्रम्हमध्व गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के महान आचार्य श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ने की हैं । इस भजन में भक्तिविनोद ठाकुर जी भगवान श्री कृष्ण के अनेक नामों का वर्णन बहुत ही मधुरता से करते हैं। विभावरी-शेष (1) विभावरी-शेष, आलोक-प्रवेश, निद्रा छाडि’ उठ जीव।बल हरि हरि, मुकुन्द मुरारी, राम-कृष्ण हयग्रीव ।। (2) नृसिंह वामन, श्रीमधुसूदन, ब्रजेन्दनंदन श्याम।पूतना-घातन, कैटभ-शातन, जय दाशरथि-राम।। (3) यशोदा-दुलाल, गोविन्द-गोपाल, वृन्दावन-पुरन्दर।गोपीप्रिय-जन, राधिका-रमण, भुवन-सुन्दरवर।। (4) रावणान्तकर, माखन-तस्कर, गोपीजन-वस्त्रहारी।व्रजेर राखाल, गोपवृन्दपाल, चित्तहारी वंशीधारी।। (5) योगीन्द्र-वंदन, श्रीनन्द-नन्दन, ब्रजजन भयहारी।नवीन नीरद, रूप मनोहर, मोहन-वंशीबिहारी।। (6) यशोदा-नन्दन, कंस-निसूदन, निकुंज रास विलासी।कदम्ब-कानन, रास परायण, वृन्दाविपिन-निवासी।। (7) आनन्द-वर्धन, प्रेम-निकेतन, फुलशर-योजक काम।गोपांगनागण, चित्त-विनोदन, समस्त-गुणगण-धाम ।। (8) यामुना-जीवन, केलि-परायण, मानस चन्द्र-चकोर।नाम-सुधारस, गाओ कृष्ण-यश, राख वचन मन मोर।। विभावरी शेष हिंदी में – अर्थ के साथ (1) विभावरी-शेष, आलोक-प्रवेश, निद्रा छाडि’ उठ जीव। बल हरि हरि, मुकुन्द मुरारी, राम-कृष्ण हयग्रीव ।।  रात्रि का अन्त  हो चुका है तथा सूर्योदय हो रहा है। सोती हुई जीवात्माओं जागो!तथा श्री हरि के नामो का जप करो । वे मुक्तिदाता हैं तथा मुर नामक असुर को मारनेवाले हैं।वे ही भगवान बलराम, भगवान कृष्ण तथा हयग्रीव हैं।। (2) नृसिंह वामन, श्रीमधुसूदन, ब्रजेन्दनंदन श्याम। पूतना-घातन, कैटभ-शातन, जय दाशरथि-राम।।  भगवान के नृसिंह अवतार की जय हो। वामनावतार की जय हो मधु  नामक  दैत्य को मरने वाले , ब्रजराज के पुत्र , श्याम  वर्णी ,वृन्दावन के परम भगवान,पूतना तथा कैटभ दैत्य का नाश करने वाले भगवान की जय हो। दशरथ पुत्र श्री रामचंद्र की जय हो।  (3) यशोदा-दुलाल, गोविन्द-गोपाल, वृन्दावन-पुरन्दर। गोपीप्रिय-जन, राधिका-रमण, भुवन-सुन्दरवर।।  माता यशोदा  के दुलारे वृन्दावन की गायों तथा गोपकुमारो के रक्षक एवम पालनकर्ता , गोपियों के परम प्रिय, राधारानी के संग विहार करने वाले ,तथा समग्र ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक आकर्षक भगवान की जय।   (4) रावणान्तकर, माखन-तस्कर, गोपीजन-वस्त्रहारी। व्रजेर राखाल, गोपवृन्दपाल, चित्तहारी वंशीधारी।।  रावण के संहारक ,माखन चोर ,गोपियों के वस्त्र चुराने वाले , ब्रज की गायों के पालनहार, गोपकुमारों का निर्वाह करने वाले, चित्त, वंशी बजने वाले की जय हो।   (5) योगीन्द्र-वंदन, श्रीनन्द-नन्दन, ब्रजजन भयहारी। नवीन नीरद, रूप मनोहर, मोहन-वंशीबिहारी।। महान  योगियों द्वारा वन्दनीय , महाराज नंद के पुत्र ,समस्त व्रजवासियों के भय को हरने  वाले ,उनका सुन्दर रूप  वर्षा ऋतु के नवीन मेघ के समान अंगकति वाले मनोहर रूप के स्वामी वंशिवबिहारी की जय हो।     (6) यशोदा-नन्दन, कंस-निसूदन, निकुंज रास विलासी। कदम्ब-कानन, रास परायण, वृन्दाविपिन-निवासी।। वे यशोदा के पुत्र ,  कंस के संहारक , वृन्दावन के निकुंजो में दिव्य रस नृत्य का आनंद उठाने वाले हैं । (7) आनन्द-वर्धन, प्रेम-निकेतन, फुलशर-योजक काम। गोपांगनागण, चित्त-विनोदन, समस्त-गुणगण-धाम ।। वे सबके आनंद को बढाते हैं । वे भगवद प्रेमोन्माद के भंडार हैं। वे पुष्प रुपी बाण चलाने वाले कामदेव  ब्रजगोपिकायो के ह्रदयों को  आनंदित करने वाले वाले तथा समस्त दिव्य गुणों के आश्रय हैं।उनकी जय हो ।  (8) यामुना-जीवन, केलि-परायण, मानस चन्द्र-चकोर। नाम-सुधारस, गाओ कृष्ण-यश, राख वचन मन मोर।। वे यमुना मैया के जीवन  एवम प्राण  हैं । वे माधुर्य प्रेम में पारंगत हैं तथा चन्द्रमा रुपी मन में वे चकोर पक्षी के समान हैं। कृष्ण के यह पवित्र नाम अमृत्यमय हैं अतएव , कृपया कृष्ण का गुणगान करो तथा इस प्रकार , श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के वचनों का मान रखो।।

नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी – Tulasi Aarti

तुलसी देवी, भगवान श्रीकृष्ण की सबसे श्रेष्ठ भक्तों में से एक  हैं  तथा कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं। यही कारण है कि कृष्ण भक्त उन्हें बहुत सम्मान देते हैं और प्रतिदिन तुलसी आरती गाते हैं। तुलसी देवी की पूजा करने का दूसरा कारण स्कंद पुराण में लिखी गई उनकी महिमा है। पुराणों में कहा गया है कि तुलसी इतनी शुभ है कि इसे देखने या छूने मात्र से ही हम ‘बीमारी’ और ‘संकट’ से दूर रहते हैं। यदि हम एक तुलसी का पेड़ लगाते हैं, उसे पानी देते हैं और उसके सामने प्रतिदिन झुकते हैं, तो तुलसी देवी हमें यमराज की छाया से भी दूर रखती है। श्री कृष्ण तुलसी के बहुत शौकीन हैं, जिन्हें महारानी भी कहा जाता है। वायु पुराण में कहा गया है: “परम भगवान हरि तुलसी के बिना किसी की पूजा स्वीकार नहीं करते हैं।” श्री तुलसी-आरती श्री तुलसी प्रणामवृन्दायै तुलसी देव्यायै प्रियायै केशवस्यच।कृष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमः।। (1) नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी ।राधा कृष्ण सेवा पाबो एई अभिलाषी ।। (2) जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूर्ण हय।कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।। (3) मोर एई अभिलाष, विलास कुन्जे दिओ वास।नयने हेरिबो सदा, युगल-रूप राशि।। (4) एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर।सेवा-अधिकार दिये, कर निज दासी।। (5) दीन कृष्णदासे कय, एइ येन मोर हय।श्री राधा गोविंदा प्रेमे सदा येन भासि।। श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यादिकानी च।तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।। श्री तुलसी-आरती हिंदी में – अर्थ के साथ श्री तुलसी प्रणाम वृन्दायै तुलसी देव्यायै प्रियायै केशवस्यच। कृष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमः।। हे  वृंदा, हे तुलसी देवी, आप भगवान केशव की प्रिया हैं, हे  कृष्णभक्ति  प्रदान करने वाली सत्यवती देवी ,आपको मेरा  बारम्बार प्रणाम है।। (1) नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी । राधा कृष्ण सेवा पाबो एई अभिलाषी ।। भगवान श्रीकृष्ण की प्रियतमा  हे तुलसी देवी मैं आपको प्रणाम करता हूं।  मेरी एकमात्र इच्छा है की मैं श्री श्री राधा कृष्ण की प्रेममयी सेवा प्राप्त कर सकूं। (2) जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूर्ण हय। कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।। जो कोई आपकी शरण लेता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। उस पर अपनी कृपा करती है  और  आप उसे वृंदावनवासी बना देती हैं। (3) मोर एई अभिलाष, विलास कुन्जे दिओ वास। नयने हेरिबो सदा, युगल-रूप राशि।। मेरी यही अभिलाषा हैं कि आप मुझे  भी वृन्दावन के कुंजो में निवास करने की अनुमति दे। ,जिससे मैं श्री  राधाकृष्ण की सुंदर लीलाओं का सदैव दर्शन कर सकूं। (4) एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर। सेवा-अधिकार दिये, कर निज दासी।। आपके चरणों में मेरा  यही निवेदन हैं की मुझे किसी ब्रजगोपी की अनुचरी बना दीजिए तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे अपनी निज दासी बनने का अवसर दीजिए । (5) दीन कृष्णदासे कय, एइ येन मोर हय। श्री राधा गोविंदा प्रेमे सदा येन भासि।।  अति दीन कृष्णदास आपसे प्रार्थना करता है, मैं सदा सर्वदा श्रीश्री राधागोविंदा के प्रेम में डूबा रहूं। श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यादिकानी च। तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।। श्रीमति तुलसी देवी की परिक्रमा से कदम-कदम पर किए गए सभी पाप, यहां तक ​​कि ब्राह्मण की हत्या का पाप भी नष्ट हो जाता है। तुलसी आरती करने की विधि तुलसी आरती प्रतिदिन सुबह मंगला आरती के बाद तथा शाम को  संध्या आरती के पहले की जाती हैं। तुलसी आरती शुरू करने से पहले हम तुलसी महारानी को तुलसी प्रणाम मंत्र बोलकर प्रमाण करते हैं तथा इसके बाद आरती शुरू करते हैं। आरती गा लेने के बाद तुलसी महारानी की श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र बोलकर तीन बार परिक्रमा करते हैं। इसके बाद तुसली महारानी को वापस से तुलसी प्रणाम मंत्र बोल कर पंचांग प्रणाम करते हैं तथा जल अर्पण करते हैं । सारांश हमारे श्रील प्रभुपाद के आध्यात्मिक गुरु, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने टिप्पणी की कि “श्रीमती तुलसी महारानी हमारी आध्यात्मिक गुरु हैं। वह श्री वृंदावन धाम की रानी हैं। उनकी कृपा से ही कोई श्री वृंदावन धाम में प्रवेश करने के योग्य हो सकता है। हम तुलसी महारानी को अपने गले में पहनते हैं, यह जानते हुए कि वह भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय हैं। उनके प्रति हमारी निष्ठा से, हम भगवान हरि के नाम का जाप करते हैं।”

हरि हराये  नमः – Hari Haraye Namah Krishna

नाम संकीर्तन नामक भजन श्रीपाद नरोत्तम दास ठाकुर जी द्वारा रचित हैं। नरोत्तम दास ठाकुर  जी का यह भजन बहुत ही प्रसिद्ध  हैं तथा भक्तगण बड़े ही उल्लास और आनंद के साथ इसका गान करते हैं ।। इस्कॉन मे यह लोकप्रिय भजनों में से एक  हैं । हरि हराये नमः (1) हरि हराये नमः कृष्ण यादवाय नमःयादवाय माधवाय केशवाय नमः।। (2) गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन।गिरिधारी गोपीनाथ मदनमोहन।। (3) श्री चैतन्य-नित्यानंद श्री अद्वैत-सीता।हरि गुरु वैष्णव भागवत गीता।। (4) श्री-रूप सनातन भट्ट रघुनाथ ।श्री जीव गोपाल-भट्ट दास रघुनाथ।। (5) एइ छाय् गोसाईर् कोरि चरण वंदन्।जहां होइतॆ विघ्न-नाश अभीष्ट-पुरण ।। (6) एइ छह गोसाईर जार मुइ तार दास।ता सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास।। (7) तादेर चरण-सेवी-भक्त-सनॆ वास।जनमॆ जनमॆ होय् एइ अभिलाष ।। (8) एइ छइ गोसाइ जबॆ ब्रजॆ कॊइला बास्।राधा-कृष्ण-नित्य-लीला कॊरिला प्रकाश ।। (9) आनंदे बोलो हरि भज वृन्दावन।श्री-गुरु-वैष्णव-पदे मजाइया मन ।। (10) श्री-गुरु-वैष्णव-पाद-पद्म कोरि आश।नाम-संकीर्तन कहॆ नरोत्तम दास।। हरि हराये  नमः हिंदी में – अर्थ के साथ हरि हराये नमः कृष्ण यादवाय नमः यादवाय माधवाय केशवाय नमः।। हे  भगवान हरि , हे श्री कृष्ण, मैं आपको नमन करता हूं। आप यादव , हरि , माधव तथा केशव नामो से जानें जाते हैं। गोपाल गोविंद राम श्री मधुसूदन। गिरिधारी गोपीनाथ मदनमोहन।। ही गोपाल ,गोविंद,राम, श्री मधुसूदन, गिरिधारी,गोपीनाथ ,मदनमोहन। श्री चैतन्य-नित्यानंद श्री अद्वैत-सीता। हरि गुरु वैष्णव भागवत गीता।। श्री चैतन्य और नित्यानंद की जय हो। श्री अद्वैत आचार्य तथा उनकी भार्या श्रीमती सीता ठाकुरानी की जय हो। भगवान श्री हरि ,गुरु, वैष्णव जन, श्रीमद्भागवत तथा श्रीमद्भगवद्गीता की जय हो। श्री-रूप सनातन भट्ट रघुनाथ । श्री जीव गोपाल-भट्ट दास रघुनाथ।। श्री रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी ,गोपाल भट्ट गोस्वामी और रघुनाथ दास गोस्वामी की जय हो। एइ छाय् गोसाईर् कोरि चरण वंदन्। जहां होइतॆ विघ्न-नाश अभीष्ट-पुरण ।। मैं इन छह गोस्वामियों के चरणों का वंदन करता हूं।उनका वंदन करने से भक्ति  के विघ्नो का नाश होता हैं तथा अभीष्ट इच्छा पूर्ण होती हैं। एइ छह गोसाईर जार मुइ तार दास। ता सबार पद-रेणु मोर पंच-ग्रास।।  मैं इन छह गोस्वामियों के सेवक का सेवक हूं। उन सबके चरणों की धूल मेरा पंच ग्रास हैं। तादेर चरण-सेवी-भक्त-सनॆ वास। जनमॆ जनमॆ होय् एइ अभिलाष ।। मेरी यही अभिलाषा हैं कि मैं इन छह गोस्वामियों के चरणों की सेवा करने वाले भक्तो के संग जन्म जन्मांतर वास करू। एइ छइ गोसाइ जबॆ ब्रजॆ कॊइला बास्। राधा-कृष्ण-नित्य-लीला कॊरिला प्रकाश ।।  इन छह गोस्वामियों ने जब ब्रज में वास किया था,तो इन्होने राधा कृष्ण की नित्य लीला का प्रकाश किया था। आनंदे बोलो हरि भज वृन्दावन। श्री-गुरु-वैष्णव-पदे मजाइया मन ।। अपने मन को श्री गुरु और वैष्णव के दिव्य चरणों के ध्यान में लगाकर आनंदपूर्वक हरि के नामो का उच्चारण करो,तथा वृन्दावन का भजन करो । श्री-गुरु-वैष्णव-पाद-पद्म कोरि आश। नाम-संकीर्तन कहॆ नरोत्तम दास।।  श्री गुरु और वैष्णवो के चरणों की आशा करता हुआ , नरोत्तम दास हरिनाम संकीर्तन करता हैं। 

जय राधा माधव कुंजबिहारी – Jaya Radha Madhav

( श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी द्वारा रचित) भक्तिविनोद ठाकुर ब्रह्म मध्व गौड़ीय संप्रदाय के महान आचार्य तथा एक महान कृष्ण भक्त थे । उन्होंने भगवान कृष्ण और उनके भक्तों की प्रसन्नता के लिए अनेक वैष्णव भजन लिखे। जय राधा माधव भजन बहुत की प्रसिद्ध भजन है तथा वैष्णवों का प्रिय भजन है भक्त बड़े प्रेम पूर्वक इस भजन का गान करते हैं । इस भजन को सामन्यतया भक्तगणों द्वारा दो प्रकार से गाया जाता है। हम आपके समक्ष दोनों ही प्रकार प्रस्तुत कर रहे हैं , आपको जैसे ठीक लगे आप वैसे गा सकते हैं।  (जय राधा माधव – 1) (जय ) राधा माधव (जय) कुंजबिहारी। (जय )गोपी जन वल्लभ (जय) गिरिवरधारी।। (जय ) यशोदा नन्दन (जय) ब्रजरंजन। (जय ) यमुनातीर वनचारी।। (जय राधा माधव – 2) जय राधा माधव कुंजबिहारी। जय गोपी जन वल्लभ गिरिवरधारी।। यशोदा नन्दन ब्रजरंजन। यमुनातीर वनचारी।। अर्थ (Meaning): वृन्दावन की कुंजो में क्रीड़ा करने वाले राधामधाव की जय। कृष्ण गोपियों के प्रियतम हैं तथा गोवर्धन गिरि को धारण करने वाले हैं।कृष्ण यशोदा के पुत्र तथा समस्त ब्रजवासियों के प्रिय हैं और वे यमुना तट पर स्थित वनों में विचरण करते हैं। (हरे कृष्ण महामंत्र ) हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।

राधा कृष्ण प्राण मोर – Radha Krishna Pran Mora

राधाकृष्ण प्राण मोर भजन नरोत्तम दास ठाकुर जी द्वारा रचित है। वे ब्रह्ममाध्वगौडीय सम्प्रदाय के महान आचार्य तथा एक महान कृष्ण भक्त थे। नरोत्तम दास ठाकुर जी ने अनेक वैष्णव भजन लिखें तथा उन्होने श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का प्रचार किया। उन्ही का ये भजन ‘राधाकृष्ण प्राण मोर’ हम आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं। राधा कृष्ण प्राण मोर (1) राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥ (2) कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥ (3) श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध ।चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥ (4) गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले ।अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥ (5) ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द ।आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥ (6) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥ राधा कृष्ण प्राण मोर – Radha Krishna Pran Mora (1) राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर । जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥ युगलकिशोर श्री श्री राधा कृष्ण ही मेरे प्राण हैं। जीवन-मरण में उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति नहीं है ॥ (2) कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन । रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥ कालिन्दी (यमुना) के तटपर कदम्ब के वृक्षों के वन में, मैं इस युगलजोड़ी को रत्नों के सिंहासन पर विराजमान करूँगा ॥ (3) श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध । चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥ मैं उनके श्याम तथा गौर अंगों पर चन्दन का लेप करूँगा, और कब उनका मुखचंद्र निहारते हुए चामर ढुलाऊँगा ॥ (4) गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले । अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥ मालती पुष्पों की माला गूँथकर दोनों के गलों में पहनाऊँगा और कर्पूर से सुगंधित ताम्बुल उनके मुखकमल में अर्पण करूँगा ॥ (5) ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द । आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥ ललिता और विशाखा के नेतृत्वगत सभी सखियों की आज्ञा से मैं श्री श्रीराधा-कृष्ण के श्री चरणों की सेवा करूँगा ॥ (6) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास । सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥ श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दासों के अनुदास श्रील नरोत्तमदास ठाकुर दिवय युगलकिशोर की सेवा-अभिलाषा करते हैं ॥

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