विभावरी शेष नामक यह भजन वृन्दावन में प्रतिदिन गुरु अष्टकम के बाद गाया जाता हैं। इस भजन की रचना ब्रम्हमध्व गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के महान आचार्य श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ने की हैं । इस भजन में भक्तिविनोद ठाकुर जी भगवान श्री कृष्ण के अनेक नामों का वर्णन बहुत ही मधुरता से करते हैं।
विभावरी-शेष
(1)
विभावरी-शेष, आलोक-प्रवेश, निद्रा छाडि’ उठ जीव।
बल हरि हरि, मुकुन्द मुरारी, राम-कृष्ण हयग्रीव ।।
(2)
नृसिंह वामन, श्रीमधुसूदन, ब्रजेन्दनंदन श्याम।
पूतना-घातन, कैटभ-शातन, जय दाशरथि-राम।।
(3)
यशोदा-दुलाल, गोविन्द-गोपाल, वृन्दावन-पुरन्दर।
गोपीप्रिय-जन, राधिका-रमण, भुवन-सुन्दरवर।।
(4)
रावणान्तकर, माखन-तस्कर, गोपीजन-वस्त्रहारी।
व्रजेर राखाल, गोपवृन्दपाल, चित्तहारी वंशीधारी।।
(5)
योगीन्द्र-वंदन, श्रीनन्द-नन्दन, ब्रजजन भयहारी।
नवीन नीरद, रूप मनोहर, मोहन-वंशीबिहारी।।
(6)
यशोदा-नन्दन, कंस-निसूदन, निकुंज रास विलासी।
कदम्ब-कानन, रास परायण, वृन्दाविपिन-निवासी।।
(7)
आनन्द-वर्धन, प्रेम-निकेतन, फुलशर-योजक काम।
गोपांगनागण, चित्त-विनोदन, समस्त-गुणगण-धाम ।।
(8)
यामुना-जीवन, केलि-परायण, मानस चन्द्र-चकोर।
नाम-सुधारस, गाओ कृष्ण-यश, राख वचन मन मोर।।
विभावरी शेष हिंदी में – अर्थ के साथ
(1) विभावरी-शेष, आलोक-प्रवेश, निद्रा छाडि’ उठ जीव। बल हरि हरि, मुकुन्द मुरारी, राम-कृष्ण हयग्रीव ।।
रात्रि का अन्त हो चुका है तथा सूर्योदय हो रहा है। सोती हुई जीवात्माओं जागो!तथा श्री हरि के नामो का जप करो । वे मुक्तिदाता हैं तथा मुर नामक असुर को मारनेवाले हैं।वे ही भगवान बलराम, भगवान कृष्ण तथा हयग्रीव हैं।।
(2) नृसिंह वामन, श्रीमधुसूदन, ब्रजेन्दनंदन श्याम। पूतना-घातन, कैटभ-शातन, जय दाशरथि-राम।।
भगवान के नृसिंह अवतार की जय हो। वामनावतार की जय हो मधु नामक दैत्य को मरने वाले , ब्रजराज के पुत्र , श्याम वर्णी ,वृन्दावन के परम भगवान,पूतना तथा कैटभ दैत्य का नाश करने वाले भगवान की जय हो। दशरथ पुत्र श्री रामचंद्र की जय हो।
(3) यशोदा-दुलाल, गोविन्द-गोपाल, वृन्दावन-पुरन्दर। गोपीप्रिय-जन, राधिका-रमण, भुवन-सुन्दरवर।।
माता यशोदा के दुलारे वृन्दावन की गायों तथा गोपकुमारो के रक्षक एवम पालनकर्ता , गोपियों के परम प्रिय, राधारानी के संग विहार करने वाले ,तथा समग्र ब्रह्माण्ड में सर्वाधिक आकर्षक भगवान की जय।
(4) रावणान्तकर, माखन-तस्कर, गोपीजन-वस्त्रहारी। व्रजेर राखाल, गोपवृन्दपाल, चित्तहारी वंशीधारी।।
रावण के संहारक ,माखन चोर ,गोपियों के वस्त्र चुराने वाले , ब्रज की गायों के पालनहार, गोपकुमारों का निर्वाह करने वाले, चित्त, वंशी बजने वाले की जय हो।
(5) योगीन्द्र-वंदन, श्रीनन्द-नन्दन, ब्रजजन भयहारी। नवीन नीरद, रूप मनोहर, मोहन-वंशीबिहारी।।
महान योगियों द्वारा वन्दनीय , महाराज नंद के पुत्र ,समस्त व्रजवासियों के भय को हरने वाले ,उनका सुन्दर रूप वर्षा ऋतु के नवीन मेघ के समान अंगकति वाले मनोहर रूप के स्वामी वंशिवबिहारी की जय हो।
(6) यशोदा-नन्दन, कंस-निसूदन, निकुंज रास विलासी। कदम्ब-कानन, रास परायण, वृन्दाविपिन-निवासी।।
वे यशोदा के पुत्र , कंस के संहारक , वृन्दावन के निकुंजो में दिव्य रस नृत्य का आनंद उठाने वाले हैं ।
(7) आनन्द-वर्धन, प्रेम-निकेतन, फुलशर-योजक काम। गोपांगनागण, चित्त-विनोदन, समस्त-गुणगण-धाम ।।
वे सबके आनंद को बढाते हैं । वे भगवद प्रेमोन्माद के भंडार हैं। वे पुष्प रुपी बाण चलाने वाले कामदेव ब्रजगोपिकायो के ह्रदयों को आनंदित करने वाले वाले तथा समस्त दिव्य गुणों के आश्रय हैं।उनकी जय हो ।
(8) यामुना-जीवन, केलि-परायण, मानस चन्द्र-चकोर। नाम-सुधारस, गाओ कृष्ण-यश, राख वचन मन मोर।।
वे यमुना मैया के जीवन एवम प्राण हैं । वे माधुर्य प्रेम में पारंगत हैं तथा चन्द्रमा रुपी मन में वे चकोर पक्षी के समान हैं। कृष्ण के यह पवित्र नाम अमृत्यमय हैं अतएव , कृपया कृष्ण का गुणगान करो तथा इस प्रकार , श्रील भक्तिविनोद ठाकुर के वचनों का मान रखो।।