यह प्रसाद मंत्र प्रसाद ग्रहण करने से पूर्व गाया जाता हैं प्रसादम का अर्थ है “कृपा” भागवान को भोग लगाया हुआ प्रसाद भगवान की कृपा हैं । भगवान कृष्ण का प्रसाद भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता हैं ।

प्रसाद मंत्र
(1)
महाप्रसादे गोविन्दे, नाम-ब्रह्मणि वैष्णवे।
स्वल्पपुण्यवतां राजन् विश्वासो नैव जायते॥[महाभारत]
(2)
शरीर अविद्या जाल, जडेन्द्रिय ताहे काल, जीवे फेले विषय-सागरे।
तारमध्ये जिह्वा अति, लोभमय सुदुर्मति, ताके जेता कठिन संसारे॥
(3)
कृष्ण बड दयामय, करिबारे जिह्वा जय, स्वप्रसाद-अन्न दिलो भाई।
सेइ अन्नामृत पाओ, राधाकृष्ण-गुण गाओ, प्रेमे डाक चैतन्य-निताई॥
(श्री पंच-तत्व प्रणाम मंत्र)
जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद।।
(हरे कृष्ण महामंत्र)
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
प्रसाद मंत्र हिंदी में -अर्थ के साथ
(1) महाप्रसादे गोविन्दे, नाम-ब्रह्मणि वैष्णवे। स्वल्पपुण्यवतां राजन् विश्वासो नैव जायते॥[महाभारत]
गोविन्द के महाप्रसाद, नाम तथा वैष्णव-भक्तों में स्वल्प पुण्यवालों को विश्वास नहीं होता। [महाभारत]
(2) शरीर अविद्या जाल, जडेन्द्रिय ताहे काल, जीवे फेले विषय-सागरे। तारमध्ये जिह्वा अति, लोभमय सुदुर्मति, ताके जेता कठिन संसारे॥
शरीर अविद्या का जाल है, जडेन्द्रियाँ जीव की कट्टर शत्रु हैं क्योंकि वे जीव को भौतिक विषयों के भोग के इस सागर में फेंक देती हैं। इन इन्द्रियों में जिह्वा अत्यंत लोभी तथा दुर्मति है, संसार में इसको जीत पान बहुत कठिन है।
(3) कृष्ण बड दयामय, करिबारे जिह्वा जय, स्वप्रसाद-अन्न दिलो भाई। सेइ अन्नामृत पाओ, राधाकृष्ण-गुण गाओ, प्रेमे डाक चैतन्य-निताई॥
भगवान् कृष्ण बड़े दयालु हैं और उन्होंने जिह्वा को जीतने हेतु अपना प्रसादन्नन्न दिया है। अब कृपया उस अमृतमय प्रसाद को ग्रहण करो, श्रीश्रीराधाकृष्ण का गुणगान करो तथा प्रेम से चैतन्य निताई! पुकारो।
(श्री पंच-तत्व प्रणाम मंत्र) जय श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद। श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद।। (हरे कृष्ण महामंत्र) हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।