राधाकृष्ण प्राण मोर भजन नरोत्तम दास ठाकुर जी द्वारा रचित है। वे ब्रह्ममाध्वगौडीय सम्प्रदाय के महान आचार्य तथा एक महान कृष्ण भक्त थे। नरोत्तम दास ठाकुर जी ने अनेक वैष्णव भजन लिखें तथा उन्होने श्री चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाओं का प्रचार किया। उन्ही का ये भजन ‘राधाकृष्ण प्राण मोर’ हम आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं।
राधा कृष्ण प्राण मोर
(1)
राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर ।
जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥
(2)
कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन ।
रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥
(3)
श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध ।
चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥
(4)
गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले ।
अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥
(5)
ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द ।
आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥
(6)
श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास ।
सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥
राधा कृष्ण प्राण मोर – Radha Krishna Pran Mora
(1) राधाकृष्ण प्राण मोर युगल-किशोर । जीवने मरणे गति आर नाहि मोर ॥
युगलकिशोर श्री श्री राधा कृष्ण ही मेरे प्राण हैं। जीवन-मरण में उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति नहीं है ॥
(2) कालिन्दीर कूले केलि-कदम्बेर वन । रतन वेदीर उपर बसाब दुजन ॥
कालिन्दी (यमुना) के तटपर कदम्ब के वृक्षों के वन में, मैं इस युगलजोड़ी को रत्नों के सिंहासन पर विराजमान करूँगा ॥
(3) श्याम गौरी अंगे दिब चन्दनेर गन्ध । चामर ढुलाब कबे हेरिब मुखचन्द्र ॥
मैं उनके श्याम तथा गौर अंगों पर चन्दन का लेप करूँगा, और कब उनका मुखचंद्र निहारते हुए चामर ढुलाऊँगा ॥
(4) गाँथिया मालतीर माला दिब दोंहार गले । अधरे तुलिया दिब कर्पूर ताम्बूले ॥
मालती पुष्पों की माला गूँथकर दोनों के गलों में पहनाऊँगा और कर्पूर से सुगंधित ताम्बुल उनके मुखकमल में अर्पण करूँगा ॥
(5) ललिता विशाखा आदि यत सखीवृन्द । आज्ञाय करिब सेवा चरणारविन्द ॥
ललिता और विशाखा के नेतृत्वगत सभी सखियों की आज्ञा से मैं श्री श्रीराधा-कृष्ण के श्री चरणों की सेवा करूँगा ॥
(6) श्रीकृष्णचैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास । सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास ॥
श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दासों के अनुदास श्रील नरोत्तमदास ठाकुर दिवय युगलकिशोर की सेवा-अभिलाषा करते हैं ॥