‘मम मन मंदिरे रहो निशिदिन कृष्ण मुरारि’ नामक यह भजन वैष्णवो को अत्यंत प्रिय हैं, तथा इस भजन की रचना ब्रह्ममध्व गौडिया संप्रदाय के महान आचार्य श्रील भक्तिविनोद ठाकुर जी ने की हैं।
मम मन मंदिरे
(1)
मम मन मंदिरे रहो निशिदिन।
कृष्ण मुरारि श्रीकृष्ण मुरारि॥
(2)
भक्ति प्रिती मालाचन्दन।
तुमि निओ हे निओ चितोनन्दन॥
(3)
जीवन मरण तोर पूजा निवेदन।
सुदर हे मन हारि॥
(4)
ऐसो नन्दकुमार आर नन्दकुमार।
ह’बे प्रेम प्रदिपे आरतिक तोमार॥
(5)
नयने यमुना जरे अनिबार।
तोमार विरहे गिरिधारी॥
(6)
वंदन गनेत ताबे बजुक जीवन।
कृष्ण मुरारि श्रीकृष्ण मुरारि॥
मम मन मंदिरे रहो निशिदिन कृष्ण मुरारि हिंदी में -अर्थ के साथ
(1) मम मन मंदिरे रहो निशिदिन। कृष्ण मुरारि श्रीकृष्ण मुरारि॥
कृपया, दिन और रात दोनों समय, मेरे मन के मन्दिर में वास कीजिए।
(2) भक्ति प्रिती मालाचन्दन। तुमि निओ हे निओ चितोनन्दन॥
भक्ति, प्रेम, पुष्प मालाएँ और चंदन कृपया स्वीकार कीजिए। हे हरि! मन को प्रसन्नचित करने वाले।
(3) जीवन मरण तोर पूजा निवेदन। सुदर हे मन हारि॥
मैं जन्म या मृत्यु में, इन वस्तुओं को अर्पित करके आपकी आराधना करता हूँ, हे सुन्दर, हे मन को आकर्षित करने वाले मनोहारी!
(4) ऐसो नन्दकुमार आर नन्दकुमार। ह’बे प्रेम प्रदिपे आरतिक तोमार॥
आओ! हे नन्द-नन्दन, मैं अपने प्रेम रूपी दीये से आपकी आरती उतारूँगा।
(5) नयने यमुना जरे अनिबार। तोमार विरहे गिरिधारी॥
हे गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले गिरधारी! आपके विरह में यमुना नदी का जल निरन्तर मेरे नेत्रों से जलप्रपात के समान गिरता है।
(6) वंदन गनेत ताबे बजुक जीवन। कृष्ण मुरारि श्रीकृष्ण मुरारि॥
हे कृष्ण मुरारि, श्रीकृष्ण मुरारि! मेरा जीवन केवल आपका यश गान करने में तल्लीन होकर वयतीत हो जाए
Very beautiful spritual song.
हरे कृष्ण…बहुत बहुत धन्यवाद आपका इतना सुन्दर भजन सेवा देने के लिए आपके लिए हरि हरि बोल