“जय राधे ,जय कृष्ण, जय वृन्दावन” नामक यह वैष्णव भजन कृष्णदास कविराज गोस्वामी द्वारा रचित हैं । तथा वैष्णव भक्तों के बीच यह भजन अत्यंत लोकप्रिय हैं।
जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन
(1)
जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन ।
श्री गोविंदा, गोपीनाथ, मदन-मोहन ॥
(2)
श्याम-कुंड, राधा-कुंड, गिरि-गोवर्धन ।
कालिंदी जमुना जय, जय महावन ॥
(3)
केशी-घाट, बंसीवट, द्वादश-कानन ।
जहां सब लीला कोइलो श्री-नंद-नंदनी ।।
(4)
श्री-नंद-यशोदा जय, जय गोप-गण ।
श्रीदामादि जय, जय धेनु-वत्स-गण ॥
(5)
जय वृषभानु, जय कीर्तिदा सुंदरी ।
जय पूरणमासी, जय अभिरा नगरी ॥
(6)
जय जय गोपिश्वर वृंदावन-माझ ।
जय जय कृष्ण-सखा बटु द्विज-राज ॥
(7)
जय राम-घाट, जया रोहिणी-नंदन ।
जय जय वृंदावन, बासी-जत-जन ॥
(8)
जय द्विज-पत्नी जय, नाग-कन्या-गण ।
भक्ति जहर पाईलो, गोविंद चरण ॥
(9)
श्री-रास-मंगल जय, जय राधा-श्याम ।
जय जय रास-लीला, सर्व-मनोरम ॥
(10)
जय जय उज्ज्वल-रस, सर्व-रस-सार ।
पारकिया-भावे जाह, ब्रजते प्रचार ॥
(11)
श्री जाह्नवा पाद पद्म कोरिया स्मरण ।
दीन कृष्ण दास कोहे नाम संकीर्तन॥
जय राधे जय कृष्ण जय वृंदावन हिंदी में – अर्थ के साथ
(1) जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन । श्री गोविंदा, गोपीनाथ, मदन-मोहन ॥
राधा-कृष्ण तथा वृंदावन धाम की जय हो। श्री गोविंद, गोपीनाथ तथा मदनमोहन- वृंदावन के इन तीन अधिष्ठाता विग्रहों की जय हो।
(2) श्याम-कुंड, राधा-कुंड, गिरि-गोवर्धन । कालिंदी जमुना जय, जय महावन ॥
श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, गिरिगोवर्धन तथा यमुना की जय हो। कृष्ण और बलराम के बाल्य क्रीडास्थल महावन की जय हो।
(3) केशी-घाट, बंसीवट, द्वादश-कानन । जहां सब लीला कोइलो श्री-नंद-नंदनी ।।
जहाँ कृष्ण ने केशी राक्षस का वध किया था, उस केशी-घाट की जय हो। जहाँ कृष्ण ने अपनी मुरली से सब गोपिकाओं को आकर्षित किया था, उस वंशी-वट की जय हो। व्रज के द्वाद्वश वनों की जय हो, जहाँ नन्दनंदन श्रीकृष्ण ने सब लीलायें कीं।
(4) श्री-नंद-यशोदा जय, जय गोप-गण । श्रीदामादि जय, जय धेनु-वत्स-गण ॥
कृष्ण के दिवय माता-पिता, नंद और यशोदा की जय हो। राधारानी और अनंग मंजरी के बड़े भााई श्रीदामा सहित सब गोपबालकों की जय हो। व्रज के सब गाय-बछड़ों की जय हो।
(5) जय वृषभानु, जय कीर्तिदा सुंदरी । जय पूरणमासी, जय अभिरा नगरी ॥
राधाजी के दिवय माता-पिता, वृषभानु और कीर्तिदा की जय हो। संदीपनि मुनि की मां, मधुमंगल व नंदीमुखी की दादी एवं देवर्षि नारद की प्रिय शिष्या- पौर्णमासी की जय हो। व्रज की युवा गोपिकाओं की जय हो।
(6) जय जय गोपिश्वर वृंदावन-माझ । जय जय कृष्ण-सखा बटु द्विज-राज ॥
पवित्र धाम के संरक्षणार्थ निवास करने वाले गोपीश्वर शिव की जय हो। कृष्ण के ब्राह्मण-सखा मधुमंगल की जय हो।
(7) जय राम-घाट, जया रोहिणी-नंदन । जय जय वृंदावन, बासी-जत-जन ॥
जहाँ बलराम जी ने रास रचाया था, उस राम-घाट की जय हो। रोहिणीनंदन बलराम जी की जय हो। सब वृंदावनवासियों की जय हो।
(8) जय द्विज-पत्नी जय, नाग-कन्या-गण । भक्ति जहर पाईलो, गोविंद चरण ॥
गर्वीले यज्ञिक ब्राह्मणों की पत्नियों की जय हो। कालिय नाग की पत्नियों की जय हो, जिन्होंने भक्ति के द्वारा गोविन्द के श्रीचरणों को प्राप्त किया।
(9) श्री-रास-मंगल जय, जय राधा-श्याम । जय जय रास-लीला, सर्व-मनोरम ॥
श्री रासमण्डल की जय हो। राधा और श्याम की जय हो। कृष्ण की लीलाओं में सबसे मनोरम, रासलीला की जय हो।
(10) जय जय उज्ज्वल-रस, सर्व-रस-सार । पारकिया-भावे जाह, ब्रजते प्रचार ॥
समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो, भगवान् कृष्ण ने परकीय-भाव में जिसका प्रचार ब्रज में किया।
(11) श्री जाह्नवा पाद पद्म कोरिया स्मरण । दीन कृष्ण दास कोहे नाम संकीर्तन॥
नित्यानंद प्रभु की संगिनी श्री जाह्नवा देवी के चरणकमलों का स्मरण कर यह दीन-हीन कृष्णदास नाम संकीर्तन कर रहा है।