यह वैष्णव भजन श्रील नरोत्तम दास ठाकुर जी द्वारा रचित हैं । इस भजन में नरोत्तम दास ठाकुर जी नित्यानंद प्रभु से भगवान श्री कृष्ण की अहैतु की भक्ति की प्रार्थना करते हैं।
गौरांङ्ग बलिते
(1)
‘गौरांङ्ग’ बलिते ह’बे पुलक-शरीर।
‘हरि हरि’बलिते नयने ब’बे नीर॥
(2)
आर क’बे निताईचाँदेर करुणा हइबे।
संसार-वासना मोर कबे तुच्छ हबे॥
(3)
विषय छाड़िया कबे शुद्ध हबे मन।
कबे हाम हेरब श्रीवृन्दावन॥
(4)
रूप-रघुनाथ-पदे हइबे आकुति।
कबे हाम बुझब से युगल पिरीति॥
(5)
रूप-रघुनाथ-पदे रहु मोर आश।
प्रार्थना करये सदा नरोत्तमदास॥
गौरांङ्ग बलिते हिंदी में – अर्थ के साथ
(1) ‘गौरांङ्ग’ बलिते ह’बे पुलक-शरीर। ‘हरि हरि’बलिते नयने ब’बे नीर॥
वह दिन कब आयेगा कि केवल ‘श्रीगौरांङ्ग’ नाम के उच्चारण मात्र से मेरा शरीर रोमांचित हो उठेगा? कब, ‘हरि हरि’ के उच्चारण से मेरे नेत्रों से प्रेमाश्रु बह निकलेंगे?
(2) आर क’बे निताईचाँदेर करुणा हइबे। संसार-वासना मोर कबे तुच्छ हबे॥
कब श्रीनित्यानंद प्रभु मुझ पर अपनी कृपावर्षा करेंगे, कि जिससे मेरी समस्त भौतिक भोग की इच्छायें तुच्छ हो जायेंगी।
(3) विषय छाड़िया कबे शुद्ध हबे मन। कबे हाम हेरब श्रीवृन्दावन॥
कब मेरा मन भौतिक सुख के विषयों को त्यागकर निर्मल होगा? कब मैं श्रीवृन्दावन धाम का वास्तविक दर्शन कर पाऊँगा।
(4) रूप-रघुनाथ-पदे हइबे आकुति। कबे हाम बुझब से युगल पिरीति॥
श्रीरूप-रघुनाथ गोस्वामी (षड्गोस्वामीवृन्द) के चरण-दर्शन के लिए कब मैं व्याकुल हो उठूँगा। कब मैं श्रीश्री राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम-व्यापार को समझने में समर्थ हो सकूँगा।
(5) रूप-रघुनाथ-पदे रहु मोर आश। प्रार्थना करये सदा नरोत्तमदास॥
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर सदा यही प्रार्थना करते हैं ‘‘श्रील रूपगोस्वामी-श्रील रघुनाथदास गोस्वामी के चरणों में मेरी सदा आशा बनी रहे। ’’
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