तुलसी देवी, भगवान श्रीकृष्ण की सबसे श्रेष्ठ भक्तों में से एक हैं तथा कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं। यही कारण है कि कृष्ण भक्त उन्हें बहुत सम्मान देते हैं और प्रतिदिन तुलसी आरती गाते हैं। तुलसी देवी की पूजा करने का दूसरा कारण स्कंद पुराण में लिखी गई उनकी महिमा है।
पुराणों में कहा गया है कि तुलसी इतनी शुभ है कि इसे देखने या छूने मात्र से ही हम ‘बीमारी’ और ‘संकट’ से दूर रहते हैं। यदि हम एक तुलसी का पेड़ लगाते हैं, उसे पानी देते हैं और उसके सामने प्रतिदिन झुकते हैं, तो तुलसी देवी हमें यमराज की छाया से भी दूर रखती है।
श्री कृष्ण तुलसी के बहुत शौकीन हैं, जिन्हें महारानी भी कहा जाता है। वायु पुराण में कहा गया है: “परम भगवान हरि तुलसी के बिना किसी की पूजा स्वीकार नहीं करते हैं।”
श्री तुलसी-आरती
श्री तुलसी प्रणाम
वृन्दायै तुलसी देव्यायै प्रियायै केशवस्यच।
कृष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमः।।
(1)
नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी ।
राधा कृष्ण सेवा पाबो एई अभिलाषी ।।
(2)
जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूर्ण हय।
कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।।
(3)
मोर एई अभिलाष, विलास कुन्जे दिओ वास।
नयने हेरिबो सदा, युगल-रूप राशि।।
(4)
एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर।
सेवा-अधिकार दिये, कर निज दासी।।
(5)
दीन कृष्णदासे कय, एइ येन मोर हय।
श्री राधा गोविंदा प्रेमे सदा येन भासि।।
श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र
यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यादिकानी च।
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।।
श्री तुलसी-आरती हिंदी में – अर्थ के साथ
श्री तुलसी प्रणाम वृन्दायै तुलसी देव्यायै प्रियायै केशवस्यच। कृष्ण भक्ती प्रदे देवी सत्य वत्यै नमो नमः।।
हे वृंदा, हे तुलसी देवी, आप भगवान केशव की प्रिया हैं, हे कृष्णभक्ति प्रदान करने वाली सत्यवती देवी ,आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है।।
(1) नमो नम: तुलसी कृष्ण प्रेयसी । राधा कृष्ण सेवा पाबो एई अभिलाषी ।।
भगवान श्रीकृष्ण की प्रियतमा हे तुलसी देवी मैं आपको प्रणाम करता हूं। मेरी एकमात्र इच्छा है की मैं श्री श्री राधा कृष्ण की प्रेममयी सेवा प्राप्त कर सकूं।
(2) जे तोमार शरण लय, तार वांछा पूर्ण हय। कृपा करि कर तारे वृंदावनवासी।।
जो कोई आपकी शरण लेता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। उस पर अपनी कृपा करती है और आप उसे वृंदावनवासी बना देती हैं।
(3) मोर एई अभिलाष, विलास कुन्जे दिओ वास। नयने हेरिबो सदा, युगल-रूप राशि।।
मेरी यही अभिलाषा हैं कि आप मुझे भी वृन्दावन के कुंजो में निवास करने की अनुमति दे। ,जिससे मैं श्री राधाकृष्ण की सुंदर लीलाओं का सदैव दर्शन कर सकूं।
(4) एइ निवेदन धर, सखीर अनुगत कर। सेवा-अधिकार दिये, कर निज दासी।।
आपके चरणों में मेरा यही निवेदन हैं की मुझे किसी ब्रजगोपी की अनुचरी बना दीजिए तथा सेवा का अधिकार देकर मुझे अपनी निज दासी बनने का अवसर दीजिए ।
(5) दीन कृष्णदासे कय, एइ येन मोर हय। श्री राधा गोविंदा प्रेमे सदा येन भासि।।
अति दीन कृष्णदास आपसे प्रार्थना करता है, मैं सदा सर्वदा श्रीश्री राधागोविंदा के प्रेम में डूबा रहूं।
श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र यानि कानि च पापानी ब्रह्म हत्यादिकानी च। तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।।
श्रीमति तुलसी देवी की परिक्रमा से कदम-कदम पर किए गए सभी पाप, यहां तक कि ब्राह्मण की हत्या का पाप भी नष्ट हो जाता है।
तुलसी आरती करने की विधि
- तुलसी आरती प्रतिदिन सुबह मंगला आरती के बाद तथा शाम को संध्या आरती के पहले की जाती हैं।
- तुलसी आरती शुरू करने से पहले हम तुलसी महारानी को तुलसी प्रणाम मंत्र बोलकर प्रमाण करते हैं तथा इसके बाद आरती शुरू करते हैं।
- आरती गा लेने के बाद तुलसी महारानी की श्री तुलसी प्रदक्षिणा मंत्र बोलकर तीन बार परिक्रमा करते हैं।
- इसके बाद तुसली महारानी को वापस से तुलसी प्रणाम मंत्र बोल कर पंचांग प्रणाम करते हैं तथा जल अर्पण करते हैं ।
सारांश
हमारे श्रील प्रभुपाद के आध्यात्मिक गुरु, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने टिप्पणी की कि “श्रीमती तुलसी महारानी हमारी आध्यात्मिक गुरु हैं। वह श्री वृंदावन धाम की रानी हैं। उनकी कृपा से ही कोई श्री वृंदावन धाम में प्रवेश करने के योग्य हो सकता है। हम तुलसी महारानी को अपने गले में पहनते हैं, यह जानते हुए कि वह भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय हैं। उनके प्रति हमारी निष्ठा से, हम भगवान हरि के नाम का जाप करते हैं।”
Hare Krishna hare Krishna Krishna Krishna hare hare hare Ram hare Ram Ram ramhare hare