दस नाम अपराधों को पद्म पुराण में इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है। चैतन्य- चरितमित्र (आदि लीला 8.24, तात्पर्य) में उद्धृत है।
प्रत्येक वैष्ण्व भक्त को चाहिए कि इन दस प्रकार के अपराधों से सदा बच कर रहे, ताकि श्रीकृष्ण के चरण कमलों में प्रेम शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त हो, जो मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है।
(1)
सतां निन्दा नाम्नः परममपराधं वितनुते।यतः ख्यातिं यातं कथमु सहते तद्विगर्हाम्।।
भगवान्नाम के प्रचार में सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले महाभागवतों की निन्दा करना।
(2)
शिवस्य श्रीविष्णोर्य इह गुणनामादिसकलं।धिया भिन्नं पश्येत्स खलु हरिनामाहितकरः।
शिव, ब्रह्मा आदि देवों के नाम को भगवान्नाम के समान अथवा उससे स्वतन्त्र समझना।
(3)
गुरोरवज्ञा ।
गुरु की अवज्ञा करना अथवा उन्हें साधारण मनुषय समझना।
(4)
श्रुतिशाñनिन्दनम्।
वैदिक शास्त्रों अथवा प्रमाणों का खण्डन करना।
(5)
हरिनाम्नि कल्पनम्।
हरे कृष्ण महामन्त्र के जप की महिमा को काल्पनिक समझना।
(6)
अर्थवादः।
पवित्र भगवन्नाम में अर्थवाद का आरोप करना।
(7)
नाम्नो बलाद्यस्य हि पापबुद्धिर् न विद्यते तस्य यमैर्हि शुद्धिः।
नाम के बल पर पाप करना।
(8)
धर्मव्रतत्यागहुतादिसर्व शुभक्रियासाम्यमपि प्रमादः।
हरे कृष्ण महामन्त्र के जप को वेदों में वर्णित एक शुभ सकाम कर्म (कर्मकाण्ड) के समान समझना।
(9)
अश्रद्दधाने विमुखेऽप्यशृण्वति यश्चोपदेशः शिवनामापराधः।
अश्रद्धालु व्यक्त्ति को हरिनाम की महिमा का उपदेश करना।
(10)
श्रुत्वापि नाममाहात्म्यं यः प्रीतिरहितोऽधमः अहंममादिपरमो नाम्नि सोऽप्यपराधकृत्अपि प्रमादः।।
भगवन्नाम के जप में पूर्ण विश्वास न होना और इसकी इतनी अगाध महिमा श्रवण करने पर भी भौतिक आसक्ति बनाये रखना।
भगवन्नाम का जप करते समय पूर्ण रूप से सावधान न रहना भी अपराध है।
Hare Krishna Dandawat Pranam
Hari bol
jay Gurudev
jay gaur Nitai
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे