ब्रह्मसंहिता एक संस्कृत पंचरात्र ग्रन्थ है, जिसमें सृष्टि के आरम्भ में ब्रह्मा जी द्वारा भगवान कृष्ण या गोविन्द की स्तुति की गयी है। गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में इस ग्रन्थ की बहुत प्रतिष्ठा है।तथा आज भी गौडीय वैष्णव के भक्त दर्शन आरती के समय यह श्लोक गाते है। दर्शन आरती के समय सभी भक्त बड़े आनंद तथा उल्लास के साथ इन श्लोकों को गाते हुए श्री श्री राधा श्यामसुन्दर के दर्शन करते है।
वैसे तो कथित तौर पर ब्रम्हा संहिता में 100 अध्याय है पर अधिकांश भाग समय के साथ विलुप्त हो गया। पर चैतन्य महाप्रभु ने आदि केशव मंदिर से ब्रह्म संहिता के पांचवे अध्याय को पुन: प्राप्त किया ।
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।
(ब्रह्म संहिता - 30) वेणुं क्वणन्तमरविन्ददलायताक्षं बर्हावतं समसिताम्बुदसुन्दराङ्गम्। कन्दर्पकोटिकमनीयविशेषशोभं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥
जो वेणु बजाने में दक्ष हैं, कमल की पंखुडियों जैसे जिनके प्रफुल्ल नेत्र हैं, जिनका मस्तक मोरपंख से आभूषित है, जिनके अंग नीले बादलों जैसे सुंदर हैं और जिनकी विशेष शोभा करोड़ों कामदेवों को भी लुभाती है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ।
(ब्रह्म संहिता - 32) अङ्गानि यस्य सकलेन्द्रियवृत्तिमन्ति पश्यन्ति पान्ति कलयन्ति चिरं जगन्ति। आनन्दचिन्मयसदुज्ज्वलविग्रहस्य गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि॥
जिनका दिवय श्री विग्रह आनंद, चिन्मयता तथा सत् से पूरित होने के कारण परमोज्जवल है, जिनके चिन्मय शरीर का प्रत्येक अंग अन्यान्य सभी इंद्रियों की पूर्ण-विकसित वृत्तियों से युक्त है, जो चिरकाल से आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों जगतों को देखते, पालन करते तथा प्रकट करते हैं, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ।
गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।
All glories to Sri guru and gauranga Jayate 🙏🙏🙏