गौर आरती संध्या को 7:15 बजे श्री श्री गौर निताई की प्रसन्नता के लिए गाई जाती है । सभी भक्त बड़े आनंद तथा उल्लास के साथ इस आरती का गान करते है। एक भक्त इस आरती को गाते है तथा बाकी सभी भक्त उन भक्त के पीछे-पीछे गाते हैं।
इस आरती के लेखक भक्तिविनोद ठाकुर हैं । भक्तिविनोद ठाकुर ब्रम्हमध्वगौडिया संप्रदाय के महान आचार्य तथा एक महान कृष्ण भक्त थे । इस गीत का आधिकारिक नाम श्री गौर आरती है। यह गीत गीतावली पुस्तक से लिया गया है (अनुभाग: आरती कीर्तन गीत)।
गौर आरती
(1)
(किब) जय जय गोराचाँदेर आरति को शोभा ।
जाह्नवी – तटवने जगमन – लोभा II
(2)
दक्षिणे निताइचाँद , बामे गदाधर ।
निकटेअद्वैत श्रीनिवास छत्रधर ॥
(3)
बसियाछे गोराचाँद रत्न सिंहासने ।
आरति करेन ब्रह्मा – आदि देव गणे ॥
(4)
नरहरि आदि करि ‘ चामर ढुलाय ।
सञ्जय मुकुन्द – वासु घोष – आदि गाय II
(5)
शंख बाजे घण्टा बाजे , बाजे करताल ।
मधुर मृदंग बाजे , परम रसाल ॥
(शंख बाजे घंटा बाजे , मधुर मधुर मधुर बाजे – 3 बार )
(6)
बहु कोटि चन्द्र जिनि वदन उज्ज्वल ।
गल देशे वनमाला करे झलमल ॥
(7)
शिव – शुक – नारद प्रेमे गदगदा ।
भकतिविनोद देखे गोरार सम्पद ॥
(पंच-तत्व प्रणाम मंत्र)
जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद,
श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।।
गौर आरती हिंदी में – अर्थ के साथ
(1) (किब) जय जय गोराचाँदेर आरति को शोभा । जाह्नवी - तटवने जगमन - लोभा II
श्रीचैतन्य महाप्रभु की सुन्दर आरती की जय हो, जय हो। यह गौर-आरती गंगा तट पर स्थित एक कुंज में हो रही है तथा संसार के समस्त जीवों को आकर्षित कर रही है।
(2) दक्षिणे निताइचाँद , बामे गदाधर । निकटेअद्वैत श्रीनिवास छत्रधर ॥
उनके दाहिनी ओर नित्यानन्द प्रभु हैं तथा बायीं ओर श्रीगदाधर हैं। चैतन्य महाप्रभु के दोनों ओर श्रीअद्वैत प्रभु तथा श्रीवास प्रभु उनके मस्तक के ऊपर छत्र लिए हुए खड़ें हैं।
(3) बसियाछे गोराचाँद रत्न सिंहासने । आरति करेन ब्रह्मा - आदि देव गणे ॥
चैतन्य महाप्रभु सोने के सिंहासन पर विराजमान हैं तथा ब्रह्माजी उनकी आरती कर रहे हैं, अन्य देवतागण भी उपस्थित हैं।
(4) नरहरि आदि करि ' चामर ढुलाय । सञ्जय मुकुन्द - वासु घोष - आदि गाय II
चैतन्य महाप्रभु के अन्य पार्षद, जैसे नरहरि आदि चँवर डुला रहे हैं तथा मुकुन्द एवं वासुघोष, जो कुशल गायक हैं, कीर्तन कर रहे हैं।
(5) शंख बाजे घण्टा बाजे , बाजे करताल । मधुर मृदंग बाजे , परम रसाल ॥ (शंख बाजे घंटा बाजे , मधुर मधुर मधुर बाजे - 3 बार )
शंख, करताल तथा मृदंग की मधुर ध्वनि सुनने में अत्यन्त प्रिय लग रही है।
(6) बहु कोटि चन्द्र जिनि वदन उज्ज्वल । गल देशे वनमाला करे झलमल ॥
चैतन्य महाप्रभु का मुखमण्डल करोड़ों चन्द्रमा की भांति उद्भासित हो चमक रहा है तथा उनकी वनकुसुमों की माला भी चमक रही है।
(7) शिव - शुक – नारद प्रेमे गदगदा । भकतिविनोद देखे गोरार सम्पद ॥
महादेव, श्रीशुकदेव गोस्वामी तथा नारद मुनि के कंठ प्रेममय दिवय आवेग से अवरुद्ध हैं। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैंः तनिक चैतन्य महाप्रभु का वैभव तो देखो।
(पंच-तत्व प्रणाम मंत्र) जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द ।।
मैं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ,श्री नित्यानंद प्रभु, श्री अद्वैत आचार्य प्रभु, श्री गदाधर पंडित प्रभु तथा श्री वास पंडित प्रभु सहित अन्यान्य सभी गौरभक्तों को प्रणाम करता हूं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
सारांश
तो इस प्रकार भक्तिविनोद ठाकुर गौर आरती के सार के बारे में बताते हैं जो सभी को आकर्षित कर रही है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद और अन्य सहयोगियों के साथ हैं, वे एक भव्य सिंहासन पर विराजमान हैं और ब्रह्मा जी अन्य देवताओं के साथ उनकी आरती कर रहे हैं। सभी महान वैष्णव और देवता बड़े आनंद के साथ महाप्रभु की सेवा कर रहे हैं।
हरे कृष्ण !
Hare Krishna hare Krishna Krishna Krishna hare hare
Hare Rama hare Rama Rama Rama hare hare
जय निताई गौर हरि
नाम करो नाम करो -श्री गुरुदेव श्री बंकिम चंद्र सेन ,भक्ति भारती भागीरथी।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे,
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
Hari bol
Hari bol
Harekrishna praboji dandwet prnam